Monday 24 December 2012

इलाहाबाद (प्रयाग) का महत्व

                              इलाहाबाद (प्रयाग)का महत्व


इलाहाबाद जिसका प्राचीन नाम प्रयाग है यह लगभग 65 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ।दिल्ली से इसकी दूरी 612 कि.मी. है और मुंबई से 1502 कि.मी.।सन् 1573 मुगल बादशाह अकबर ने त्रिवेणी संगम पर एक प्रतापी संग्रामिक किले का निर्माण किया  तत्पश्चात इस स्थान का नाम अल्लाहबास नाम से पुननार्माकंन किया । 
प्रयाग अर्थात वह स्थान जहाँ महान यज्ञों का आयोजन किया जाता है। गंगा नदी के तट पर कुल चौदह प्रयाग स्थित है और प्रयागराज इलाहाबाद संगमों का सम्राट .सबसे प्रमुख माना जाता है । ब्रह्मपुराण के अनुसार ,सृष्टि की रचना हेतु तथा सागर मंथन से उन्पन्न विष -प्रदुषण के निराकरण के  उद्देश्य से बह्रमाजी ने यज्ञ आयोजित करने का विचार किया । इस कार्य को सफल करने के लिए उन्होने गंगा,यमुना तथा सरस्वती द्वारा घिरे हुए एक भुखण्ड का चयन किया यही कालान्तर में प्रयाग के नाम से जाना गया । महाभारत वन पर्व में उल्लेख है -"गंगा और यमुना के बीच का भूखण्ड पृथ्वी का कटि-प्रदेश कहलाता है  यही स्थान प्रयाग सर्वाधिक पवित्र व समृद्व स्थान है , पृथ्वी का उपजाउ भाग माना जाता है । पृथ्वी पर स्थित पांच वेदियों का मध्य भाग प्रयाग है अन्य चार वेदियां है -कुरूक्षेत्र,गया,विरज तथा  पुष्कर ।
महाभारत के अनुसार ,प्रयाग संपूर्ण ब्रमांड में सर्वाधिक पुज्यनीय स्थान है ।  ब्रह्रमाजी के वचनों में-प्रयागस्य प्रवेशेषु पापं नशयति तत्क्षणम् । प्रयाग में प्रवेश करते ही समस्त पापों का  नाश हो जाता है  ।  
प्रयाग को तीर्थराज-प्रयाग भी कहा जाता है । वायु  पुराण में प्रयाग को वेदों की नसिका भी कहा गया है तथा वराहपुराण में प्रयाग का वर्णन इस प्रकार है । प्रयाग में त्रिवेणी संगम तीन नदियों का संगम है जहाँ शिवजी निवास करते है। भगवान विष्णु यहां वेणुमाधव के नाम से प्रसिद्व है  यहाँ गंगा ,यमुना एवं सरस्वती नदियों का संगम  होता है। इस स्थान पर स्नान करने वालों स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है व  इस स्थान पर देह त्यागने पर मुक्ति प्राप्त होती है । प्रयाग भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। पवित्र कुम्भ मेला हर बारह वर्ष में संगम के तट पर सम्पन्न होता है।
त्रिवेणी संगम-यघपि तीनों नदियां पृथ्वी पर हिमालय की चोटी से निकलती है पर गंगा व यमुना प्रयाग में ही दिखलायी पडती है ।सरस्वती को  रहस्यमयी नदी  कहा जाता हे है वह कभी भूमि पर प्रवाहित होती ह ता कभी भूमि के भीतर यह प्रयाग में अदृश्य है जिसे कुम्भ मेले में आये तीर्थयात्रियों के लिए साधुगणों व विद्वानों के मुख से प्रवाहित होने वाले शब्दों के रूप में सरस्वती के प्रवाहित होने का अभिप्राय जान ,त्रिवेणी का पूर्ण होना जाना जाता है ।    
प्रयाग सोम ,वरूण तथा प्रजापति की जन्मस्थली भी है इसीलिए प्रयाग वर्तमान में इलाहाबाद का महत्व बहुत अधिक है ।
By 
Sunita Sharma Khatri
Freelancer Journlist
http://sunitakhatri.blogspot.com

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